झारखंड: अतीत से वर्तमान तक की यात्रा
25 वर्षों का सफर और एक गौरवशाली इतिहास
आज, 15 नवंबर, भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन है। यह न केवल महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती है, बल्कि इसी दिन वर्ष 2000 में, बिहार के दक्षिणी हिस्से को काटकर, भारत का 28वाँ राज्य – झारखंड (Jharakhand) अस्तित्व में आया था। इस स्थापना दिवस के अवसर पर, आइए हम भारत के इतिहास में इसकी जड़ों और पिछले 25 वर्षों की इसकी प्रगति पर एक नजर डालते हैं।
📜 भारत के इतिहास में झारखंड की भूमिका
झारखंड का इतिहास सदियों पुराना है और इसने भारत की स्वतंत्रता संग्राम और सांस्कृतिक विरासत को गहराई से प्रभावित किया है।
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प्राचीन और मध्यकाल: झारखंड क्षेत्र, जिसे प्राचीन काल में ‘खुखरा’ या ‘झारखंड’ (जंगल का क्षेत्र) कहा जाता था, हमेशा से ही अपनी अद्वितीय आदिवासी संस्कृति और वन संपदा के लिए जाना जाता रहा है। यह क्षेत्र मौर्य, गुप्त और बाद में मुगल साम्राज्यों के प्रभाव में भी रहा, लेकिन इसके आंतरिक हिस्से पर स्थानीय नागवंशी, चेरो और अन्य राजवंशों का प्रभुत्व बना रहा।
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स्वतंत्रता संग्राम में योगदान: ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासी विद्रोहों का यह प्रमुख केंद्र था।
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हूल विद्रोह (संथाल विद्रोह): 1855-56 में सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में हुआ यह विद्रोह ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहला बड़ा संगठित विद्रोह था।
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बिरसा मुंडा का उलगुलान (महान हलचल): 19वीं सदी के अंत में ‘धरती आबा’ बिरसा मुंडा ने जल, जंगल, जमीन और आदिवासी अधिकारों के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध ‘उलगुलान’ का नेतृत्व किया। 15 नवंबर को उनका जन्मदिन होना, राज्य के स्थापना दिवस के महत्व को और बढ़ा देता है।
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🌳 झारखंड के गठन की वास्तविक सच्चाई
झारखंड का गठन किसी प्रशासनिक सुविधा का परिणाम नहीं था, बल्कि यह लंबे और संघर्षपूर्ण आंदोलन की परिणति थी।
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अलग राज्य की माँग: 20वीं सदी की शुरुआत से ही आदिवासी नेताओं और बुद्धिजीवियों ने संसाधनों के शोषण, सांस्कृतिक पहचान के हनन और अपेक्षाकृत कम विकास के कारण एक अलग ‘झारखंड’ राज्य की माँग उठानी शुरू कर दी थी।
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मुख्य कारण:
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पहचान और संस्कृति: आदिवासी समाज अपनी अनूठी भाषा, रीति-रिवाज और जंगल-आधारित जीवन शैली को संरक्षित करना चाहता था।
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आर्थिक असमानता: यह क्षेत्र खनिज संसाधनों (कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट) से समृद्ध होने के बावजूद, यहाँ की अधिकांश आबादी गरीबी और पिछड़ेपन का शिकार थी। स्थानीय लोगों का मानना था कि उनके संसाधनों का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है।
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राजनीतिक उपेक्षा: उनका मानना था कि बड़े बिहार राज्य में उनके विशिष्ट मुद्दों और विकास की जरूरतों को पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व और महत्व नहीं मिल रहा है।
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सफलता: दशकों के आंदोलन, जिसमें जयपाल सिंह मुंडा जैसे नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, के बाद अंततः 2 अगस्त 2000 को भारतीय संसद ने बिहार पुनर्गठन विधेयक पारित किया और 15 नवंबर 2000 को झारखंड का सपना साकार हुआ।
🚀 पिछले 25 वर्षों का कार्यकाल: विकास और चुनौतियाँ
अपने 25 वर्षों के कार्यकाल में, झारखंड ने विकास और सुशासन की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, लेकिन कई चुनौतियाँ अभी भी बरकरार हैं।
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उपलब्धियाँ:
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बुनियादी ढाँचा: सड़कों, बिजली, और संचार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं।
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खनन और उद्योग: यह राज्य देश की औद्योगिक और ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। जमशेदपुर (टाटा नगर), बोकारो और रांची जैसे शहर औद्योगिक केंद्र बने हुए हैं।
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शिक्षा और स्वास्थ्य: साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, और उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या बढ़ी है।
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चुनौतियाँ:
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नक्सलवाद: राज्य के कई क्षेत्रों में नक्सल समस्या विकास की गति को धीमा करती रही है।
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संसाधन प्रबंधन: खनिजों के अत्यधिक खनन से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण और विस्थापन की समस्या एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
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मानव विकास सूचकांक: गरीबी, कुपोषण और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच जैसे मानकों पर अभी भी सुधार की व्यापक आवश्यकता है, ताकि विकास का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँच सके।
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