A.I. वरदान या अभिशाप?
A.I.: वरदान या अभिशाप? A.I. (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) एक ऐसा विषय है जो आज विश्व भर में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। यह हमारे भविष्य को कैसे आकार देगा, यह सवाल हर किसी के मन में है।
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A.I. का उदय और प्रारंभिक चिंताएँ
80-90 के दशक में, विद्यार्थियों के लिए निबंध का एक बड़ा ही प्रचलित विषय था: “विज्ञान वरदान या अभिशाप?” आज, उसी तरह का प्रश्न पूरे मीडिया जगत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (A.I.) को लेकर उठ रहा है। जब A.I. के “गॉडफादर” कहे जाने वाले जेफ्री हिंटन (Geoffrey Hinton) ने अपने ही आविष्कार पर अफ़सोस व्यक्त किया, तो यह सवाल और भी गहरा हो गया। इसे उसी प्रकार घातक माना गया जैसे मैनहट्टन प्रोजेक्ट को, जिसने विश्व को परमाणु बम जैसे विनाशकारी हथियार दिए। ऐसे में, यह मुद्दा फिर से उठ खड़ा हुआ है कि A.I. के युग में हमारा भविष्य कैसा होगा?
मनुष्य का स्वभाव रहा है कि जिन चीजों को हम पूरी तरह नहीं समझते, उनके प्रति हम शंकालू रहते हैं। यही कारण है कि शायद ही किसी बड़े आविष्कार को शुरुआती दौर में सराहा गया हो। परंतु यह भी कटु सत्य है कि, एक बार जिस ओर हमने कदम बढ़ा दिए, उसकी प्रगति को रोकना, शायद उसके निर्माताओं के लिए भी असम्भव है।
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नियंत्रण की आवश्यकता और A.I. के लाभ
यही कारण है कि A.I. के भगवन कहे जाने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता जेफ्री हिंटन जैसे विशेषज्ञ आज हर मंच से यह अपील कर रहे हैं कि मानव सभ्यता के विनाश को रोकने के लिए A.I. के प्रयोग को नियंत्रित करना आवश्यक है।
यद्यपि आज हम A.I. के कई अद्भुत लाभ देख पा रहे हैं। इसने सूचना तक पहुँच को अत्यंत सुगम बनाया है। यह अब हमारे लिए एक व्यक्तिगत सहायक, शिक्षक और सुरक्षाकर्मी की तरह भी काम कर सकता है। डेटा प्रोसेसिंग और विश्लेषण, व्यापार प्रबंधन, इमेज क्रिएशन और न जाने कितने ही ऐसे कार्यक्षेत्र हैं जहाँ A.I. का उपयोग करके घंटों का काम मिनटों में किया जा रहा है।
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बढ़ते खतरे: नौकरियाँ और सुरक्षा
लेकिन यहीं से एक बड़ा खतरा भी उत्पन्न हो रहा है: लाखों लोगों की नौकरियाँ छिन जाने का खतरा। परंतु इससे भी बड़ा एक खतरा है जो पूरी विश्व समुदाय पर मंडरा रहा है, और वह है हमारी सुरक्षा का खतरा। हम जानते हैं कि आज हमारा वैश्विक सौहार्द कैसा है, ऐसे में A.I. जैसे आविष्कार लोगों को उनकी असली पहचान भुलाकर एक कृत्रिम दुनिया में ले जा सकते हैं तथा कुछ गिने-चुने लोगों का गुलाम बना सकते हैं, जो इस आविष्कार पर अपना नियंत्रण रखते हैं।
समाधान की ओर: जागरूकता और नियंत्रण
अब प्रश्न यह उठता है कि इस समस्या का समाधान क्या है? मेरे विचार से, सर्वप्रथम कोई भी आविष्कार तभी समस्या बन सकता है जब हम उसके प्रति जागरूक न हों और ‘Adaptation Mode’ में न जाकर ‘Ignorance Mode’ में रहें। ऐसी परिस्थिति में यह कुछ ही लोगों के हाथों में होगी, और वे इसका दुरुपयोग कर सकते हैं।
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परंतु सफलता की कुंजी ‘मानव-केंद्रित A.I.’ में निहित है। हमें A.I. के विकास के लिए स्पष्ट नैतिक और कानूनी ढाँचे (Ethical and Legal Frameworks) तैयार करने होंगे, जो मानव मूल्यों और सुरक्षा को सर्वोपरि रखें।
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शिक्षा के क्षेत्र में तत्काल क्रांति लानी होगी, ताकि हमारी युवा पीढ़ी A.I. को केवल उपभोक्ता के रूप में नहीं, बल्कि इसके सह-निर्माता और नियंत्रक के रूप में समझ सके। हमें ‘डिजिटल साक्षरता’ (Digital Literacy) को एक अनिवार्य कौशल बनाना होगा।
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वैश्विक स्तर पर, सरकारों को एक ‘A.I. संधि’ (A.I. Treaty) पर सहमत होना चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे परमाणु हथियारों के नियंत्रण के लिए संधियाँ बनी थीं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी राष्ट्र विनाशकारी उद्देश्य से इसका दुरुपयोग न करे।
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हमें भयभीत होने के बजाय, इस शक्ति को जिम्मेदारी से संभालना होगा। A.I. का भविष्य इसके हार्डवेयर या कोड में नहीं, बल्कि उन मूल्यों और सिद्धांतों में छिपा है जिनके साथ हम इसे प्रशिक्षित करते हैं और नियंत्रित करते हैं।
अतः यह आवश्यक होगा कि हम इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करें, पुरानी ढर्रे से बाहर निकलें, इसकी खूबियों और कमियों को अच्छी तरह से समझते हुए, मानव कल्याण के लिए जितनी उपयोगिता आवश्यक है, उतना ही सीमित करने का प्रयास करें।


