दिल्ली के रोहिणी इलाके में लगी भीषण आग — सैकड़ों झुग्गियाँ जलकर राख

नई दिल्ली, 10 नवंबर 2025 — दिल्ली के रोहिणी इलाके में स्थित रिठाला मेट्रो स्टेशन के पास दो दिन पहले देर रात लगी भीषण आग ने पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया। शुक्रवार रात करीब 10 बजकर 56 मिनट पर यह आग भड़क उठी और कुछ ही मिनटों में स्लम क्षेत्र की सैकड़ों झुग्गियों को अपनी चपेट में ले लिया।
क्या हुआ
फायर ब्रिगेड को सूचना मिलते ही लगभग 15 फायर टेंडर मौके पर पहुँचे, लेकिन आग इतनी भयंकर थी कि उसे पूरी तरह काबू में लाने में कई घंटे लग गए। आग बुझाने के बाद चारों तरफ राख, मलबा और टूटे सिलिंडर बिखरे पड़े थे। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार करीब 400 से 500 झुग्गियाँ पूरी तरह जलकर राख हो गईं और लगभग 2000 लोग बेघर हो गए। इस हादसे में एक व्यक्ति की मौत और एक बच्चे के घायल होने की पुष्टि हुई है।
आग कैसे फैली
प्रारंभिक जांच से पता चला है कि आग की शुरुआत संभवतः इलाके के ट्रांसफार्मर से हुई, जहाँ शॉर्ट सर्किट के कारण चिंगारी निकली। यह चिंगारी आसपास रखे प्लास्टिक और ज्वलनशील सामान को लग गई, जिससे कुछ ही मिनटों में आग पूरे स्लम एरिया में फैल गई।
कई झुग्गियों में रखे एलपीजी गैस सिलिंडर फटने लगे, जिससे धमाके की आवाजें आने लगीं और आग की लपटें और ऊँची उठने लगीं। आग की तीव्रता इतनी अधिक थी कि दमकलकर्मियों को पास जाने में भी मुश्किलें आईं। टिन और प्लास्टिक की छतों ने आग को और तेजी से फैलाया।
प्रभावित लोग और स्थिति
आग के बाद पूरा इलाका एक खंडहर में बदल गया। सैकड़ों परिवारों के पास अब न तो घर बचा है और न ही ज़रूरी सामान। लोगों के कपड़े, राशन, दस्तावेज़ और कीमती चीज़ें सब कुछ जल गया।
रात भर कई परिवार खुले आसमान के नीचे रहे। छोटे बच्चों और बुजुर्गों को ठंड से बचाने के लिए लोगों ने जलते हुए कोयले या टूटे लकड़ी के टुकड़े जलाकर अपने को गर्म रखने की कोशिश की।
एक गर्भवती महिला ने कहा —
“मेरी डिलीवरी अगले महीने है, लेकिन अब मेरा घर नहीं रहा। मुझे नहीं पता मैं और मेरा बच्चा कहाँ रहेंगे।”
कई मजदूर और रिक्शा चालक जो दिनभर मेहनत करके गुज़ारा करते थे, अब पूरी तरह से असहाय महसूस कर रहे हैं।
राहत और बचाव कार्य
घटना के तुरंत बाद दिल्ली फायर सर्विस, पुलिस और आपदा प्रबंधन की टीमें मौके पर पहुँचीं। इलाके को घेर लिया गया ताकि आग और आगे न बढ़ सके।
घायलों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया। प्रशासन की ओर से अस्थायी राहत शिविर बनाए गए हैं जहाँ खाने-पीने का सामान, कपड़े और प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराई जा रही है।
दिल्ली सरकार ने घोषणा की है कि प्रभावित परिवारों को जल्द मुआवजा दिया जाएगा और राहत कार्यों की निगरानी खुद स्थानीय प्रशासन करेगा। फायर डिपार्टमेंट ने घटना की जांच शुरू कर दी है ताकि यह पता लगाया जा सके कि आग शॉर्ट सर्किट से लगी या किसी लापरवाही के कारण।
कारण और प्रमुख समस्याएँ
यह हादसा फिर से यह दिखाता है कि स्लम इलाकों में अग्नि सुरक्षा को लेकर स्थिति बेहद खराब है।
झुग्गियाँ टिन और प्लास्टिक जैसे ज्वलनशील पदार्थों से बनी होती हैं।
उनमें बिजली की वायरिंग खुली रहती है, जिससे शॉर्ट सर्किट का खतरा हमेशा बना रहता है।
अधिकांश घरों में गैस सिलिंडर, मिट्टी का तेल और लकड़ी जैसे पदार्थ बिना सुरक्षा उपायों के रखे रहते हैं।
बचाव के लिए कोई निश्चित रास्ते नहीं होते, जिससे लोग समय पर बाहर नहीं निकल पाते।
देर रात आग लगने की वजह से बचाव दलों को समय पर पहुँचने में कठिनाई हुई, जिससे नुकसान और बढ़ गया।
लोगों की व्यथा
रविवार सुबह जब सूरज निकला, तब भी इलाके में धुआँ उठ रहा था। बच्चे राख में अपने खिलौने और स्कूल की किताबें ढूँढ रहे थे।
एक बुजुर्ग महिला ने कहा —
“मेरे पति की दवाइयाँ, पहचान पत्र और हमारी थोड़ी सी जमा-पूँजी — सब जल गया।”
कई लोगों ने बताया कि उन्होंने अपनी आँखों के सामने पूरे मोहल्ले को जलते देखा, लेकिन कुछ नहीं कर सके।
राहत केंद्रों की स्थिति
सरकार की ओर से लगाए गए राहत शिविरों में सीमित जगह और संसाधन हैं। कई लोगों को खुले मैदान में रहना पड़ रहा है।
पीने के पानी की कमी, स्वच्छ शौचालय और बिजली की अनुपलब्धता जैसी समस्याएँ बनी हुई हैं। राहत सामग्री बाँटने में भी असमानता की शिकायतें सामने आई हैं।
भविष्य की चुनौतियाँ
अब सबसे बड़ी चुनौती इन परिवारों के पुनर्वास की है।
जिनके घर जल गए हैं, उन्हें फिर से छत मुहैया कराना होगा।
मलबा हटाना और संक्रमण से बचाव के उपाय जरूरी हैं।
कई स्कूल-आयु के बच्चे अब पढ़ाई से वंचित हो गए हैं, उनके लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत है।
मानसिक आघात से जूझ रहे परिवारों को मनोवैज्ञानिक सहायता भी दी जानी चाहिए।
सरकार ने वादा किया है कि वह प्रभावित परिवारों को अस्थायी आवास देगी और जल्द पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। लेकिन लोगों का भरोसा तभी लौटेगा जब उन्हें वास्तव में जमीन पर मदद दिखाई देगी।
सुरक्षा और सुधार की ज़रूरत
दिल्ली जैसे महानगर में हर साल इस तरह की घटनाएँ सामने आती हैं। प्रशासन को अब ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए ठोस नीति बनानी होगी —
स्लम इलाकों में नियमित बिजली निरीक्षण किए जाएँ।
गैस सिलिंडर वितरण में सुरक्षा मानकों का पालन हो।
फायर हाइड्रेंट और पानी के टैंकरों की उपलब्धता बढ़ाई जाए।
लोगों को फायर सेफ्टी प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे आपात स्थिति में खुद को बचा सकें।

निष्कर्ष
रिठाला आग की यह घटना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि चेतावनी है कि हमारे शहरों में गरीब तबका किस तरह असुरक्षित परिस्थितियों में जी रहा है।
एक छोटी-सी चिंगारी ने सैकड़ों परिवारों की जिंदगी उजाड़ दी।
अब यह सरकार और समाज, दोनों की जिम्मेदारी है कि प्रभावित परिवारों को जल्द राहत मिले, पुनर्वास का काम पारदर्शी तरीके से हो और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
यह हादसा हमें सिखाता है कि विकास का असली अर्थ केवल ऊँची इमारतें नहीं, बल्कि सुरक्षित और मानवीय जीवन परिस्थितियाँ भी हैं।
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