जातीय जनगणना पर क्रेडिट लेने की होड़ सभी पार्टियां “क्यू”जुटी है!
भारत में जातीय जनगणना पर क्रेडिट लेने की होड़ में सभी पार्टियां जुटी है । इस ख़ुशी को देखकर लग ऐसा लग रहा बेरोजगार युवकों को किसी योजना के तहत सरकारी नौकारी दे रहे हैं ? जब देश में आंतकवादी हमले और बंगाल हिंसा से उभर भी नहीं पाया…. दुसरी तरफ नेताओं के दिवाली के पटाखे निकल गये !! हमेशा की तरह एक बार सभी बड़े विषय पर चुपी साधते हुए….. जबकि भारत सरकार ने 2021 में लोकसभा में कहा था कि नीतिगत तौर पर जनगणना में एससी और एसटी के आलावा अन्य जाति-वार आबादी की गणना नहीं करने का निर्णय लिया है ।….. हमारे ऋग्वेद में जाति की आधार पर सरचना की गयी है । जिसमें जाति के आधार पर काम बांटने का निर्णय लिया गया था! जब अंग्रेज भारत आए थे ….उस समय जाातिवाद चरम सीमा पर था… ऊंची जाति के लोगों की तरफ से छोटी जाति लोगों के बीच ताने- बाने से लेकर परेशनियां बड़ी रहती थी! औपनिवेषिक काल में भारत में 1931 में जाातियों के सभी आंकड़े जमा किए । मंडल आयोग ने भी 1980 में ओबीसी आबादी का अनुमान लगाया उसके बाद 1990 में आरक्षण नीतियों का आधार बना । जिससे जाातिगत भेदभाव सरकार को कम करने में मदद मिली और छोटी जाातियों को आगे बढ़ाने का मौका मिला !
जातीय जनगणना पर क्रेडिट लेने की होड़ सभी पार्टियां “क्यू”जुटी है!
जबकि वर्तमान समय में यही आरक्षण एक बीमारी बन गया… इस आरक्षण की वजह से पढ़ने में अच्छे विद्याथियों को सामन्य जााति होने की वजह से पीछे होते गए वही एससी ओबीसी एसटी कैटगिरी के विद्याथियो मौके का फायदा उठा लेते है । जातिगत जनगणना के फयादे है तो इसके काफी नुकशान भी है । इससे भारत सरकार को नितियां बनाने में मदद मिलेगी तो दुसरी भेदभाव भी समाज में बढ़ेगा …भारत में जातीय जनगणना को लेकर छिड़ी राजनीतिक होड़ चिंताजनक है। यह स्पष्ट है कि बेरोजगारी, आर्थिक मंदी और देश की अन्य गंभीर समस्याओं को दरकिनार करते हुए, लगभग सभी दल इसे चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने पर तुले हुए हैं। देश अभी भी हाल ही में हुए आतंकवादी हमलों और पश्चिम बंगाल जैसी जगहों पर हुई हिंसा से जूझ रहा है, और नेता पहले ही अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल करने लगे हैं। ऐसे समय में जब देश को एकता और विकास पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जातीय जनगणना पर यह राजनीतिक हड़कंप सामाजिक विभाजन को और गहरा सकता है।
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