भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘गीग इकोनॉमी’ और नारी सशक्तिकरण: एक क्रांति से कम नहीं!
आजकल हम अपने आस-पास ऐसे कई लोगों को देखते हैं जो किसी कंपनी एवं कस्टमर के बीच सर्विस पहुँचाने का कार्य करते हैं। साथ ही, ऐसे कई विज्ञापन हमारे सोशल मीडिया साइट पर हम देख पाते हैं जिनमें फ्रीलांसर (Freelancer) या वर्क फ्रॉम होम जैसे कार्य करने वाले लोगों की आवश्यकता बताई जाती है। पिछले कुछ सालों में ऐसे वर्क कल्चर की बाढ़ सी आई है, जो हमारे देश की G.D.P. के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को भी प्रभावित करने लगा है। इस कार्य व्यवस्था के पैटर्न को हम गीग इकोनॉमी (Gig Economy) के रूप में वर्गीकृत करते हैं।
इस लेख में, हम इसी गीग इकोनॉमी की उस पक्ष को जानने का प्रयास करेंगे जो महिला सशक्तिकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
💡 गीग इकोनॉमी: क्या है इसका अर्थ?
गीग का शाब्दिक अर्थ छोटा काम / अस्थायी काम या कार्य-आधारित टास्क से है। यह शब्द अंग्रेजी में पहले संगीत जगत में उपयोग होता था, जहाँ कलाकार कार्यक्रम में एक बार प्रदर्शन करते थे। उस एक प्रदर्शन को Gig कहा जाता था। बाद में यह शब्द उस काम के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा जो स्थायी नहीं होते और थोड़े समय के लिए किए जाते हैं।
👩💻 महिलाओं के लिए वरदान: अनुकूल कार्यशैली
जैसा कि हम जानते हैं, भारतीय समाज में परिवार की देख-भाल महिलाओं का प्राथमिक कार्य माना जाता है। यह एक प्राकृतिक नियम है कि बच्चा पिता की अपेक्षा माता पर अधिक निर्भर होता है। ऐसी स्थिति में, यदि एक महिला पूर्णकालिक आर्थिक क्रियाकलाप से जुड़ती है, तो उसे कई प्रकार की चुनौतियों के साथ-साथ दोहरा काम का दबाव भी झेलना पड़ता है। कार्यस्थल में सुरक्षा की चिंता और यात्रा की समस्या जैसे कारणों से कई बार महिलाओं को परिवार से अनुमति नहीं मिलती।
परन्तु, गीग इकोनॉमी की इस संरचना ने महिलाओं को उनके ही घरों में, उनके समय के अनुसार, तथा बिना किसी यात्रा के कामों की उपलब्धता दी है। कार्य क्षेत्र: गीग इकोनॉमी का कार्य क्षेत्र ब्लू कॉलर जॉब (पैकिंग, डिलीवरी आदि) और व्हाइट कॉलर जॉब (कुशल श्रमिक महिलाएं फ्रीलांसिंग के ज़रिए) दोनों में ही व्याप्त है। अर्थात, यदि कोई महिला अकुशल श्रमिक है तो भी उसके लिए इस व्यवस्था में रोज़गार है।

📄 नीति आयोग का समर्थन और लचीले अवसर
नीति आयोग की रिपोर्ट “India’s Booming Gig and Platform Economy” के अनुसार, गीग इकोनॉमी भारत में महिलाओं के लिए नए, लचीले और सुरक्षित आर्थिक अवसर पैदा कर रही है। नीति आयोग ने इस बात को माना है कि घरेलू ज़िम्मेदारियाँ, परिवार की देखभाल और सामाजिक सीमाएँ उन्हें फुल टाइम नौकरी करने से रोकती है।
वहीं, गीग इकोनॉमी उन्हें यह सुविधा देती है कि वे:
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✅ अपने समय के अनुसार काम चुनें।
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✅ घर से काम कर सकें।
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✅ पार्ट टाइम या कम घंटे काम कर सकें।
🌟 माइक्रो उद्यमी के रूप में महिलाएं
गीग इकोनॉमी महिलाओं को माइक्रो उद्यमी भी बना रही है। उदाहरण के लिए:
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घर की बनी पापड़/अचार Meesho और Amazon पर बेचना।
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ऑनलाइन ट्यूशन और कोचिंग, ट्यूटोरियल विडियो आदि।
डिजिटल प्लेटफॉर्म से फैली यह अर्थव्यवस्था महिलाओं को रोज़गार के साथ-साथ नए कौशल सीखने और ज्ञान बढ़ाने का भी मौका देती है, जिससे वे उच्च आय वाली नौकरियों में प्रवेश करती हैं। जो कि सशक्तिकरण का आधार है।

💰 आर्थिक स्वतंत्रता: सशक्तिकरण का सबसे बड़ा स्तम्भ
गीग कार्य ने महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता प्रदान की है। वे अब अपनी कमाई स्वयं रख सकती हैं, उनके व्यय या निवेश का निर्णय ले सकती हैं।
दरअसल, आर्थिक स्वतंत्रता ही वास्तविक सशक्तिकरण का सबसे बड़ा स्तम्भ है।
🚧 चुनौतियाँ और बाधाएँ
यद्यपि गीग इकोनॉमी ने महिलाओं के लिए कई संभावनाओं के द्वार खोले हैं, परन्तु अभी भी कुछ समस्याएँ हैं जिनके कारण महिलाओं की सशक्तिकरण में बाधा उत्पन्न हो रही है:
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डिजिटल साक्षरता की कमी: गीग इकोनॉमी का आधार डिजिटल प्लेटफॉर्म है, परन्तु अभी भी महिलाओं में डिजिटल साक्षरता या डिजिटल उपकरणों का अभाव देखा गया है।
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स्थायित्व की कमी: यह गीग इकोनॉमी का एक अवगुण माना जाता है। इसमें स्थायित्व (स्टेबिलिटी) की कमी देखी जाती है। अतः, महिलाएँ इन रोज़गार के आधार पर अपनी दीर्घकालिक आर्थिक योजनाएँ नहीं बना सकतीं।
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सुरक्षित कार्यस्थल का अभाव: ब्लू कॉलर जॉब जैसे डिलीवरी इत्यादि में यहाँ भी सुरक्षित कार्यस्थल का अभाव देखने को मिलता है

🎯 निष्कर्ष: सशक्तिकरण की सबसे बड़ी शक्ति
निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो गिग इकोनॉमी महिलाओं के लिए रोजगार, सम्मान और स्वतंत्रता के नए द्वार खोल रही है। यह न केवल महिलाओं की आय बढ़ा रही है, बल्कि उन्हें आर्थिक, सामाजिक और डिजिटल रूप में सशक्त भी कर रही है।

गीग इकोनॉमी भारत में महिला सशक्तिकरण की सबसे बड़ी शक्ति बन सकती है
