KARMA FESTIVAL 2024: जाने विधि और मान्यता
KARMA पर्व भारतीय राज्यों झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, ओडिशा और बांग्लादेश में मनाया जाने वाला एक फसल उत्सव है। यह शक्ति, यौवन और युवावस्था के देवता KARMA-देवता की पूजा के लिए समर्पित है। यह अच्छी फसल और स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है।
KARMA त्यौहार में एक विशेष नृत्य किया जाता है जिसे KARMA नाच कहते हैं। यह पर्व हिन्दू पंचांग के भादों मास की एकादशी को झारखण्ड, छत्तीसगढ़ सहित देश विदेश में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर श्रद्धालु उपवास के पश्चात KARMA वृक्ष की शाखा को घर के आंगन में रोपित करते हैं तथा मिट्टी से हाथी और घोड़े की मुर्तियां बनाकर KARMA देवता की पूजा करते हैं। पूजा-अर्चना करने के पश्चात महिला-पुरुष नगाड़ा, मांदर और बांसुरी के साथ KARMA शाखा के चारों ओर KARMA नाच-गान करते हैं। दूसरे दिन कुल देवी-देवता को नवान्न (नया अन्न) देकर ही उसका उपभोग शुरू होता है। KARMA नृत्य को नई फ़सल आने की खुशी में लोग नाच-गाकर मनाया जाता है। KARMA पर्व विभिन्न आदिवासी और विभिन्न हिन्दु किसान समूहों द्वारा मनाया जाता है, जिनमें शामिल हैं: बैगा, भूमिज, उरांव, खड़िया,मुंडा, कुड़मी, कोरवा, भुईयां-घटवाल, बागाल, घटवार, बिंझवारी, कुरमाली, लोहरा, आदि।

त्यौहार
भादो महीने (अगस्त-सितंबर) की पूर्णिमा को आमतौर पर KARMA उत्सव मनाया जाता है। KARMA वृक्ष, उत्सव की कार्यवाही का केंद्र है। KARMA उत्सव की तैयारी त्योहार से लगभग दस या बारह दिन पहले शुरू हो जाती है। नौ प्रकार के बीज जैसे चावल, गेहूँ, मक्का आदि टोकरी में लगाएं जाते हैं, जिसे जावा कहा जाता है। लड़कियां इन बीजों की 7-9 दिनों तक देखभाल करते हैं।
झारखंड में KARMA परब
KARMA उत्सव की सुबह महिलाओं द्वारा चावल का आटा प्राप्त करने के लिए लकड़ी की यंत्र ढेकी में चावल कूटने के साथ शुरू होती है। इस चावल के आटे का उपयोग स्थानीय व्यंजन बनाने के लिए किया जाता है जो मीठा भी हो सकता है और नमकीन भी। इस व्यंजन को KARMA उत्सव की सुबह खाने के लिए पकाया जाता है, और पूरे मोहल्ले में बांटा जाता है।
KARMA कथा सुनते लोग
अनुष्ठान में, लोग ढोल-नगाड़ों और मांदर वादकों के समूह के साथ जंगल में नाचते जाते हैं और पूजा करने के बाद KARMA के पेड़ की एक या एक से अधिक शाखाओं को काटते हैं। शाखाओं को आमतौर पर अविवाहित, युवा लड़कियों द्वारा गाँव में लाया जाता है और गांव के अखाड़ा (कभी-कभी मैदान में) के बीच में शाखा को लगाया जाता है। जिसे गाय के गोबर से लीपा जाता है और फूलों से सजाया जाता है। एक ग्राम पुजारी (क्षेत्र के अनुसार पाहन या देहुरी) धन और संतान देने वाले देवता (KARMA देवता) के लिए अंकुरित अनाज और हंड़िया को प्रसाद में चढ़ाता है। KARMA देवता की पूजा करने के पश्चात, KARMA देवता (प्रकृति देवता) की कथा सुनाई जाती है। फिर लोग अपने कान के पीछे पीले रंग के फूल के साथ अनुष्ठान नृत्य शुरू करते हैं। सभी पुरुष और महिलाएं चावल से बनी पेय-पदार्थ ‘हंड़िया’ पीते हैं और पूरी रात गायन और नृत्य में बिताते हैं; दोनों त्योहार के आवश्यक भाग हैं, जिसे KARMA नाच के नाम से जाना जाता है।
KARMA नाच करते महिला-पुरूष
ढोल-नगाड़ों और मांदर की थाप और लोकगीतों पर महिलाएं एवं पुरुष नृत्य करती हैं। पूजा के बाद एक सामुदायिक दावत और हंड़िया पीने का आयोजन किया जाता है। अगले दिन KARMA की डाली नृत्य करते हुए नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। और इस तरह से KARMA नाचते गाते आता है और हमें खुशियां दे चला जाता है!
लोक-कथाएं
KARMA पूजा की उत्पत्ति के पीछे की कहानी के कई संस्करण हैं। मानवशास्त्री हरि मोहन लिखते हैं कि संस्कार समाप्त होने के बाद लड़के और लड़कियों को KARMA की कहानी सुनाई जाती है। उनके अनुसार त्योहार के पीछे की कहानी यह है:
एक बार की बात है, सात भाई थे जो कृषि कार्य में कड़ी मेहनत करते थे। उनके पास दोपहर के भोजन के लिए भी समय नहीं था; इसलिए, उनकी पत्नियां उनके लिए भोजन रोजाना खेतों में ले जाती थीं। एक बार ऐसा हुआ कि उनकी पत्नियाँ उनके लिए दोपहर का भोजन नहीं लाईं, वे भूखे थे। शाम को वे घर लौटे और देखा कि उनकी पत्नियाँ आंगन में KARMA के पेड़ की एक शाखा के पास नाच-गा रही थीं। इससे वे क्रोधित हो गए और उनमें से एक भाई आपा खो बैठा। उसने KARMA की शाखा उखाड़ ली और उसे नदी में फेंक दिया। KARMA देवता का अपमान किया गया; परिणामस्वरूप, उनके परिवार की आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई और वे भुखमरी की स्थिति में आ गए। एक दिन एक पुजारी उनके पास आया और सातों भाइयों ने उसे पूरी कहानी सुनाई। फिर सातों भाई ‘KARMA राजा’ की तलाश में गांव से निकल गए। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहे और एक दिन उन्हें KARMA का पेड़ मिल गया। इसके बाद, उन्होंने इसकी पूजा की और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा।
भूमिज और उरांव लोगों के बीच दो प्रमुख किंवदंती है, पहली कथा के अनुसार, सात भाई एक साथ रहते थे। जिनमें छह बड़े भाई खेतों में काम करते थे और सबसे छोटा भाई घर पर ही रहता था। वह अपनी छह भाभियों के साथ आंगन में एक KARMA के पेड़ के चारों ओर नृत्य और गीत गाया करता था। एक दिन वे नाच-गाने में इतने मशगूल थे कि बड़े भाइयों का खाना उनकी पत्नियाँ खेत तक नहीं ले गईं। जब भाई घर पहुंचे तो वे आगबबूला हो गए और KARMA के पेड़ को नदी में फेंक दिया। सबसे छोटा भाई गुस्से में घर छोड़कर चला गया। फिर बाकी भाइयों पर बुरे दिन आ गए। उनके घर क्षतिग्रस्त हो गए, फसलें खराब हो गईं और वे लगभग भूखमरी की स्थिति में आ गए। जंगल -पहाड़ों में घूमते-घूमते सबसे छोटे भाई को एक दिन KARMA का पेड़ नदी में तैरता हुआ मिला। तब उसने KARMA देवता की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया, जिसने सब कुछ बहाल कर दिया। तत्पश्चात वह घर लौट आया और अपने भाइयों को बुलाकर उनसे कहा कि क्योंकि उन्होंने KARMA देवता का अपमान किया था, वे बुरे दिनों में गिर गए थे। तभी से KARMA देवता (KARMA वृक्ष) की पूजा की जाती है।
Web Stories :- करम
दूसरी कथा के अनुसार, करमू-धरमु (कर्मा-धर्मा) नामक दो भाई थे, जो काफी गरीब थे। उनकी एक बहन थी, जिनसे वे बहुत प्यार करते थे। उनकी बहन KARMA पौधे की पूजा किया करती थी और उसके चारों ओर नाचते-गाते रहते थी। एक बार कुछ दुश्मनों ने उस पर हमला कर दिया तो उसके दोनों भाईयों ने अपनी जान की बाजी लगाकर अपनी बहन को बचाया था।[1] तब से बहन ने KARMA पौधे से अपने भाईयों के लिए खुशी, सुख और समृद्धि मांगी तथा दोनों भाइयों के साथ KARMA देवता की पूजा हर्षोल्लास के साथ करती थी। तीनों का जीवन सुखमय था। एक बार बड़ा भाई करमू काम के सिलसिले में परदेश चला गया। वर्षों बाद, वह बहुत धनी होकर घर लौटा। उसका छोटा भाई धरमु तथा उनकी बहन KARMA वृक्ष के नीचे KARMA देवता की अराधना में लीन थे, तथा बड़े भाई करमू के स्वागत में नहीं गए। क्रोधित होकर करमू ने KARMA वृक्ष को उखाड़ कर नदी में फेंक दिया। उसके पश्चात करमू और धरमू का जीवन कठिनाइयों से गुजरने लगा और उनकी भूखमरी की स्थिति हो गई। तब उनकी बहन ने उन्हें बताया कि KARMA देवता के अपमान के कारण उनकी यह दशा हुई है। उसके बाद दोनों भाई जंगलों-पहाड़ों तथा देश-परदेशों में घूम-घूम कर KARMA वृक्ष की तलाश करने लगे। एक दिन उन्हें वह KARMA वक्ष नदी में तैरता हुआ मिला, जिसे वे वापस घर लाकर पूजा करने लगे। उनका जीवन दोबारा सुखमयी हो गया।