सिर्फ एक सरकारी किताब नहीं, भारत की धड़कन है हमारा ‘संविधान’

दिनांक: 26 नवंबर
लेख: The Palash News टीम
दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि कश्मीर की घाटियों से लेकर कन्याकुमारी के तट तक, और गुजरात के रण से लेकर अरुणाचल की पहाड़ियों तक—इतनी अलग भाषाओं, खान-पान और पहनावे के बावजूद हम सब एक साथ कैसे हैं?
वह कौन सी डोर है जिसने हम 140 करोड़ लोगों को बांध रखा है? वह डोर कोई और नहीं, हमारी ‘संविधान’ की किताब है। आज 26 नवंबर है, यानी संविधान दिवस। यह दिन किसी छुट्टी का नहीं, बल्कि खुद को याद दिलाने का दिन है कि हम ‘भारत के लोग’ असल में कितने ताकतवर हैं।
26 जनवरी तो पता है, पर ये 26 नवंबर क्या है?
अक्सर हम इन दो तारीखों में उलझ जाते हैं। इसे ऐसे समझते हैं— 26 नवंबर 1949 वह तारीख थी जब संविधान बनकर ‘तैयार’ हुआ था और हमने इसे अपनाया था। जैसे एक मकान बनकर तैयार हो गया हो। और 26 जनवरी 1950 वह दिन था जब हमने उस मकान में ‘रहना’ शुरू किया (लागू किया)। इसलिए आज का दिन उस नींव को सेलिब्रेट करने का है।
स्याही नहीं, पसीने से लिखा गया है यह

हमारा संविधान रातों-रात कंप्यूटर पर टाइप नहीं हुआ था। इसके पीछे डॉ. भीमराव अंबेडकर और संविधान सभा के तमाम सदस्यों की 2 साल, 11 महीने और 18 दिन की तपस्या थी।
जरा सोचिए, उस दौर में जब देश आज़ाद हुआ था, गरीबी थी, भेदभाव था—तब एक ऐसा दस्तावेज तैयार करना जो हर गरीब, हर दलित, हर महिला और हर अमीर को बराबर की कतार में खड़ा कर दे, कोई जादू से कम नहीं था। यह दुनिया का सबसे लंबा हाथ से लिखा गया संविधान है, जिसे प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने अपने हाथों से सजाया था।
मेरी और आपकी ज़िंदगी में इसका क्या काम?
आप सोच रहे होंगे कि “ये तो वकीलों की बातें हैं, मुझे इससे क्या?”
यही तो हम भूल जाते हैं।
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आज अगर आप बेझिझक सोशल मीडिया पर अपनी राय लिख पा रहे हैं, तो यह हक़ आपको संविधान के आर्टिकल 19 ने दिया है।
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चाहे कोई करोड़पति हो या मजदूर, वोटिंग लाइन में सब एक बराबर खड़े होते हैं—यह ताकत इसी संविधान की है।
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आप अपनी मर्जी का धर्म मान सकते हैं, अपनी पसंद का काम कर सकते हैं—यह सब इसी किताब की बदौलत है।
सिर्फ हक़ नहीं, थोड़ा फर्ज़ भी…
हम अक्सर कहते हैं, “यह मेरा अधिकार है!” लेकिन The Palash News आज आपसे एक सवाल पूछना चाहता है—क्या हम अपने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभा रहे हैं?
सड़क पर कचरा न फेंकना, ट्रैफिक नियमों का पालन करना, दूसरे धर्मों का सम्मान करना और देश की संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना—ये हमारे मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties) हैं। संविधान सिर्फ लेने की नहीं, देने की भी बात करता है।
आज का संकल्प
तो आइए, इस संविधान दिवस पर हम एक छोटा सा वादा करें। हम संविधान को सिर्फ अलमारी में रखी एक भारी-भरकम किताब नहीं समझेंगे, बल्कि इसके मूल्यों को अपनी सोच में उतारेंगे।
जब हम सुधरेंगे, तभी देश आगे बढ़ेगा।
संविधान दिवस की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएं!
— जय हिन्द!
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Wikipedia: Constitution day
