नया नहीं है HMPV वायरस… भारत में 21 साल पहले मिला था पहला केस, सबसे ज्यादा इन लोगों को खतरा

भारत में HMPV के अबतक 7 मामले सामने आ चुके हैं. वहीं चीन में इस वायरस के संक्रमण से जुड़े केस बढ़ते जा रहे हैं. इन सबके बीच ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या ये वायरस नया है या पहले से ही ये वजूद में था?
चीन के बाद भारत में भी HMPV (मानव मेटाबॉलिक न्यूमोवायरस) ने दस्तक दे दी है. इस नई बीमारी को लेकर लोग खौफ में हैं. कुछ इसकी तुलना कोविड-19 से कर रहे हैं. इस बीच भारत सरकार ने लोगों से अपील की है कि इसको लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है. इसके मामलों में वृद्धि से कोविड जैसा प्रकोप नहीं होगा. ये कोई नई बीमारी नहीं है. अब ऐसा में सवाल उठता है कि आखिर ये बीमारी आई कहां से और ये कितनी पुरानी है.
भारत में सोमवार को एचएमपीवी के सात मामले सामने आ चुके हैं. इनमें दो बेंगलुरु, नागपुर और तमिलनाडु में और एक अहमदाबाद में पाए गए हैं. चीन में श्वसन संबंधी इस नई बीमारी के उछाल के बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने चिंताओं को दूर करते हुए कहा कि मामलों में वृद्धि से कोविड जैसा प्रकोप नहीं होगा.
नया नहीं है HMPV
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार एचएमपीवी कोई नया वायरस नहीं है. इसकी पहली बार पहचान 2001 में हुई थी और यह सालों से दुनिया भर में फैल रहा है. वहीं विशेषज्ञों ने कहा कि एचएमपीवी के लिए शायद ही कभी अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है. इसलिए यह ज्यादा चिंताजनक नहीं है.
सामान्य जुकाम और फ्लू जैसे होते हैं लक्षण
ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस या HMPV एक श्वसन वायरस है जो मानव फेफड़ों और श्वसन नली में इंफेक्शन पैदा करता है. यह सामान्य तौर पर ऐसी स्थितियां पैदा करती है जो सामान्य सर्दी या फ्लू में होता है. पहले से ऐसी बीमारियों या एलर्जी से ग्रस्त लोगों में इस वायरस का संक्रमण आम बात है.
2001 में पहले मामले की हुई थी पुष्टि
HMPV एक तरह से पैरामाइक्सोवायरस परिवार का वायरस है. पहली बार इसका मामला 2001 में पाया गया था. इसके करीबी जेनेटिक संबंध के कारण, यह रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस या RSV से जुड़ा है और इससे संबंधित ही लक्षण भी इसमें दिखते हैं.
भारत में पहली बार 2003 में मिला था मामला
भारत में पहली बार इस वायरस की पुष्टि 2003 में हुई थी. बीजे मेडिकल कॉलेज और एनआईवी पुणे ने पहली बार पुणे में भारतीय बच्चों में एचएमपीवी की पुष्टि की थी. बाद के कई अध्ययनों में भी इस वायरस के मामले सामने आए. 2024 में गोरखपुर में सांस की बीमारी से पीड़ित 100 बच्चों में से 4% में एचएमपीवी के लक्ष्ण पाए गए थे.
नीदरलैंड में 1958 से मौजूद है ये वायरस
इस वायरस की खोज डच वैज्ञानिकों ने 2000 में की थी. जब इस वायरस का पहला मामला पाया गया तो इसके जीनोम का अनुक्रमण 2001 में किया गया था. बाद में, इसके सीरोलॉजिकल अध्ययनों से पता चला कि एचएमपीवी 1958 से ही नीदरलैंड में मौजूद था.
बच्चे और बुजुर्गों के लिए संवेदनशील
HMPV बच्चे, बूढ़े और उन युवाओं के लिए संवेदनशील हो सकता है जो किसी ऐसी ही बीमारी से ग्रस्त हो और अधिक कमजोर हो गए हो. निमोनिया या ब्रोंकाइटिस एचएमपीवी अलग-अलग मौसमी पैटर्न में फैलता है, जो अक्सर सर्दियों में बढ़ जाता है. मानव मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) से पीड़ित होने पर आमतौर पर खांसी, छींकने, घरघराहट, बहती नाक या गले में खराश जैसे लक्षण सामने आते हैं. अधिकांश मामले हल्के होते हैं.
चिंता की बात नहीं है: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने चिंताओं को दूर करते हुए कहा, ‘हेल्थ एक्सपर्ट्स ने एचएम पवी वायरस के बारे में यह स्पष्ट किया है कि यह वायरस कोई नया वायरस नहीं है. इसकी पहचान सबसे पहले वर्ष 2001 में हुई थी और कई वर्षों से यह विश्व भर में फैल रहा है. एचएम पीवी वायरस एक ऐसा वायरस है जो हवा के जरिए सांस लेते समय एक दूसरे में फैलता है. यह सभी आयु वर्ग के लोगों में संक्रमण का कारण भी बनता है. यह विशेष रूप से सर्दी और बसंत के मौसम के शुरुआती महीनों में अधिक देखा जाता है. चीन में जो एचएम पीवी वायरस के मामले पर हाल ही में आई रिपोर्ट पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के साथ और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के साथ और वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के साथ चीन सहित पड़ोसी देशों में स्थिति पर कड़ी निगरानी रखे हुए है.’
‘WHO ने भी स्थिति का जायजा लिया है और जल्द ही वो भी अपनी रिपोर्ट साझा करेंगे. हमसे आईसीएमआर इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च और इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलेंस प्रोग्राम आईडीएसपी के साथ उपलब्ध सांस संबंधित वायरस के देशव्यापी डेटा को भी समीक्षा की जा रही है और भारत में किसी भी कॉमन रेस्पिरेटरी वायरल रोगाणु की वृद्धि नहीं देखी गई है.’
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