Karam Parab: “करम परब” भाई बहन के प्रेम को दर्शाता है !
Karam Parab: भाद्र मास के एकादशी को मनाए जाने वालाकरम पर्व एक वर्षाकालीन पर्व है . वर्षा ऋतु के तीन मुख्य पर्व हैं मनसा, करम और जितिया . करम को अंग्रेजी भाषा के प्रभाव से लोग कर्मा कहते हैं ,जबकि इसका असल नाम करम है . धान रोकने का काम पूरा होने के बाद कृषक वर्ग इत्मीनान हो जाते हैं ,नाचने गाने को तैयार रहते हैं .इसी बीच प्रकृतिपरक पूजा करम आ जाता है ,इस पर्व का मुख्य ध्येय है:- “प्रकृति की सुरक्षा” जब प्रकृति सुरक्षित रहेगी तो हम संरक्षित रहेंगे .करम राजा का पूजन करने के बाद सभी करमती बहाने करम की डाली को पकड़ कर भेंट लगती है मन ही मन करम देवता से मन्नतें मांगती है ,उन्हें सुयोग वर मिले अच्छा घर परिवार मिले ससुराल में किसी प्रकार का कष्ट ना हो आदि.भेट लगाने की रीति जैसे ही पूरी होती है, तब पाहन पूछते हैं , बताओ ( डायर धयर धयर का पाल ) ? अर्थात करम डाली को पकड़ पकड़कर क्या पाया ? सभी करमती एक स्वर में कहती है “अपन करम भैया के धरम “ वहां दूसरी बार पूछते हैं, और क्या पाया तब उत्तर देती है, एकटा बेटा और एकटा बेटी अर्थात एक बेटा और एक बेटी . फिर तीसरी बार पूछते हैं ,और क्या पाया यह सभी एक स्वर में कहती है- “गांव ग्रामेक सउब बेसे बेस राहुक” अर्थात गांव में खुशहाली रहे जबकि अपने मन की बात को गुप्त ही रखती है.
Karam Parab:-

यदि इस बात जीत के मूल में जाकर देखें तो पता चलेगा कि कमर परब पूरी तरह बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की भावना से उत्प्रोत है करम उपवास मुख्य रूप से कुंवारी कन्या करती हैं लेकिन विवाह बाद भी करती है ,उस स्थिति में जिनके ससुराल वाले करम गाड़ते ऐसी स्थिति विवाहित भी करम उपवास रखती है, मान्यता है कि करम पूजा आरंभ करने के बाद सम संख्या में नहीं छोड़ा जा सकता है .इसके लिए विषम संख्या का होना जरूरी है जैसे तीन डाला , पांच डाला, सात डाला इत्यादि.
करम परब में “बाली” यानी कि बालू उठाने का रिवाज है, यह भी तीन पांच सात या फिर 9 दिन का उठाया जाता है.बाली उठाकर जिसमें रखा जाता है उसे “जावा” कहते हैं.उसे जावा के अंदर सघन रूप से धान , चना ,कुर्ती ,और भटूरे के बीज डाले जाते हैं. नदी या सत्य से बालू उठाकर सभी करमती नहा धोकर घर आती है .घर जाकर “आंकरी थापती” है “आंकरी थापती” अर्थात बीजों को अंकुरित होने के लिए दिया जाता है. साथ में खीरा रखती है. उसमें एक बेटा खीरा, साथ में आंकरी ओगरा यानी पहरेदार और तीसरी उपवास तोड़ती है उस समय खाने के लिए, कुल मिलाकर तीन खीरे होते हैं.
इसके अतिरिक्त प्रसाद के लिए अलग से खीरे रखे जाते हैं, बहने करम पूजन करने के बाद सबसे पहले अपने सहोदर भाई को धागा बांधती है. यह बंधन भाई बहन के बीच आपसी स्नेह और सुचिता को सिद्ध करता है, बहन भाई के हाथ में इसलिए धागा बांधती है कि, उनके भाई का हाथ बहन के ससुराल जाने के बाद माता-पिता की सेवा में कोई कमी ना करें .दूसरा, बहन पर कोई विपत्ति आए तो बहन की सुरक्षा के लिए भाई का हाथ हमेशा आगे रहे .यह सारी पवित्र भावनाओं के साथ बहिनी करम पूजन के बाद भाई के हाथ में धागा बांधती है.

हमारे देहातों में रक्षाबंधन से अधिक महत्व करम पूजा के धागा बांधने को दिया जाता है जबकि दोनों में भाई-बहन के आपसी प्रेम को ही दर्शाता है.
करम पूजा के दिन करम के वृक्ष से डाली काटकर जिसे डाइर कहा जाता है, उसे लाते हैं .डाली काटने का काम भाई करता है डाली को करमती बहाने बाज-बजाना के साथ नाचते गाते हुए घर को लाती है .उसके बाद आंगन में गाड़ा किया जाता है. तत्पश्चात करम का पूजन किया जाता है पूजन का काम पहन या पंडित या नई मिलकर संपन्न करते हैं .पूजन के बाद रात भर नाच डेग किया जाता है आजकल तो अधिकांश जगहों पर DJ बजाया जाता है और नृत्य करते हैं जबकि पहले पारंपरिक तौर पर ढोल नगाड़े के साथ गीत गाकर उत्सव मनाया जाता था . करम परव को झारखंड के आदिवासी और मूलवासी सभी बड़े ही धूमधाम से साथ मनाते हैं .
करम विसर्जन के बाद हमारे ग्रामीण क्षेत्र में डारी गाड़ने की प्रथम है डारी गाड़ने का काम पुरुष वर्ग का होता है. डारी गाड़ने के पीछे का तर्क है कि साल भर में कम से कम एक बार करम राजा अपना खेतवाड़ी को देख ले कहीं कोई खेतों में कोई बीमारी या महामारी तो नही है . डारी भी भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है जैसा किसी खेत में धान के रोपण रोपनी में बाद में हुई हैऔर उसे खेत पर भूखी या रोग लग गया है तो उसे खेत पर मकई या बलवा की डाली गड़ा जाता है. जिससे धान की बीमारी ठीक हो जाती है.
करम पूजा के बाद करम और धरम की कथा सुनाई जाती है उसे कथा में बताया जाता है किकरम राजा दोनों भाई से रूठ जाते हैं ,जिसके कारण उन लोगों,जिसके कारण उन दोनों भाई का हर करम का विपरीत परिणाम होता था . वे लोग धन को भीगने के लिए देते तो उसी रात अंकुरित हो जाता था इस प्रकार का इस तरह की घटनाएं उनके साथ घटती थी तब वह दोनों भाई करम और धरम बूढ़े बुजुर्ग से संपर्क करते हैं तब उन्हें पता चलता है कि करम राजा रूठ गए हैं इसके बाद वे दोनों भाई भादर मास के एकादशी तिथि को करम पूजा किया था तब जाकर सब कुछ सामान्य हो गया .इस कथा के मूल में भाव यह है कि व्यक्ति केवल कर्म करता है रहे और धर्म न करे तो संतुलन नहीं बैठता है अर्थात करम और धरम के साथ लेकर चलने से जीवन व्यापक होता है.करम पूजा व्यक्ति को पेड़ पौधों से भावनात्मक रूप से जोड़ने का संदेश देता है .वही धान , चना ,कुर्थी आदि बीजों को जावा में अंकुरित करना अर्थात सृष्टि के नियम को गतिशील बनाए रखने के लिए संतति को जन्म देने द्योतक भी है. इश्वारिये सृष्टि में पारणात्मक देने की शक्ति केवल नारी और प्रकृति को प्राप्त है . यदि हम इन्हें सुरक्षित रख सकेंगे तभी हमारा करम पूजा की सार्थकता है.अन्यथा सिर्फ परंपरा का निर्वाह मात्र है.
जोहर ! करम राजा

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