Karma Parva : Festival of Nature and Love
Karma Parva : प्रकृति और प्रेम का त्योहार
भारत का दिल कहे जाने वाले झारखंड की पहचान केवल जंगल, पहाड़ और खनिजों से नहीं है, बल्कि यहाँ की मिट्टी में बसते हैं गीत, नृत्य और त्योहार। इन्हीं में से सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है करमा पर्व। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक दर्शन है। इसमें प्रकृति, भाई-बहन का रिश्ता, सामूहिक एकता और कृषि जीवन के संघर्ष–सुख सबकुछ एक साथ झलकते हैं।
Karma Parva : करमा पर्व की पृष्ठभूमि
करमा पर्व आदिवासी समाज का त्योहार है, खासकर झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मध्यप्रदेश और बंगाल के कुछ हिस्सों में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व हजारों वर्षों से लोकजीवन का हिस्सा रहा है।
आदिवासी जीवन की जड़ें हमेशा से प्रकृति में रही हैं। उनका मानना है कि पेड़, पहाड़, नदी, चाँद, सूरज — सब जीवित हैं और इंसान की तरह उनका भी सम्मान होना चाहिए। करमा पर्व इसी सोच का सबसे सुंदर उदाहरण है।
नाम क्यों पड़ा “करमा” ?
इस पर्व का नाम पड़ा है करम वृक्ष (Karam Tree / Kadamba Tree) के कारण।
आदिवासी परंपरा में करम वृक्ष को जीवन का रक्षक माना जाता है। मान्यता है कि जैसे यह वृक्ष अपनी हरियाली और छाँव से सबको सुरक्षा देता है, वैसे ही यह देवता इंसानों को सुख-समृद्धि देते हैं।
Karma Parva : कब और क्यों मनाया जाता है?
करमा पर्व आमतौर पर भाद्रपद (भादो) मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। यह समय खेती के लिए भी अहम होता है क्योंकि बरसात का मौसम चल रहा होता है और धान की फसल खेतों में लहलहा रही होती है।
इस समय किसान प्रार्थना करते हैं कि उनकी मेहनत सफल हो, फसल अच्छी हो, परिवार और गांव खुशहाल रहें।
Karma Parva : त्योहार की तैयारियाँ
करमा पर्व कोई एक दिन का कार्यक्रम नहीं है। इसके लिए पूरा गांव हफ्तों पहले से तैयारी करता है।
- घर की सफाई और सजावट
महिलाएँ घर को साफ करती हैं, दीवारों को मिट्टी और गोबर से लीपती हैं। यह परंपरा स्वच्छता और पवित्रता का प्रतीक है। - गीत और नृत्य की तैयारी
युवतियाँ और युवा पहले से ही करमा गीत और नृत्य की रिहर्सल करते हैं। रात को ढोल-नगाड़े और मंद्र के साथ गाना-बजाना चलता है। - सामूहिक योगदान
हर परिवार इस पर्व में कुछ न कुछ अर्पित करता है — चाहे वह अनाज हो, फल हो या श्रम।
Karma Parva : करमा पर्व की मुख्य रस्में
(क) करम डाल लाना
करमा पर्व की सबसे खास परंपरा है करम डाल लाना।
त्योहार वाले दिन गांव के युवक जंगल जाते हैं। वहाँ से वे करम वृक्ष की डालियाँ काटकर लाते हैं। यह कोई साधारण डाल नहीं होती, इसे पूरे सम्मान और श्रद्धा से लाया जाता है।
जंगल से लौटते समय वे गीत गाते हैं, ढोल-नगाड़ा बजाते हैं और मानो पूरे जंगल को बता रहे हों कि आज करमा देवता गांव में पधार रहे हैं।
(ख) डाल की स्थापना
गांव के बीचोंबीच या किसी खुले स्थान पर मिट्टी का गड्ढा खोदकर करम डाल गाड़ा जाता है। उसके चारों ओर सजावट की जाती है और महिलाएँ वहाँ धागा बांधती हैं। यह धागा भाई-बहन के रिश्ते की मजबूती का प्रतीक है।

(ग) पूजा-अर्चना
शाम को पूरे गांव के लोग इकट्ठे होते हैं।
- महिलाएँ करमा गीत गाते हुए करम डाल के चारों ओर परिक्रमा करती हैं।
- पुजारी (जिन्हें “पाहन” कहा जाता है) पूजा करते हैं।
- इसमें अनाज, फूल, दूध, जौ, धान आदि चढ़ाया जाता है।
(घ) करमा गीत और कथा
पूजा के दौरान महिलाएँ और लड़कियाँ करमा गीत गाती हैं। ये गीत केवल धार्मिक नहीं, बल्कि प्रेम, भाई-बहन के रिश्ते, प्रकृति और जीवन के संघर्ष को भी दर्शाते हैं।
साथ ही करमा पर्व की कथाएँ भी सुनाई जाती हैं, जिनमें यह बताया जाता है कि कैसे करम देवता ने जीवन की रक्षा की।
Karma Parva : करमा की कथाएँ (लोककथाएँ)
इस पर्व से जुड़ी कई कहानियाँ प्रचलित हैं। उनमें से एक बहुत लोकप्रिय है:
कहते हैं कि तीन भाई रहते थे। सबसे छोटा भाई मेहनती और ईमानदार था, पर बड़े भाई आलसी और लालची। एक दिन सबसे छोटे भाई ने करम देवता की पूजा की, लेकिन बड़े भाइयों ने उसका मजाक उड़ाया। गुस्से में आकर बड़े भाइयों ने करम डाल को पानी में फेंक दिया। इससे उनके घर पर विपत्ति आ गई, फसल नष्ट हो गई, पशु मर गए, परिवार में बीमारी फैल गई।
तब छोटे भाई ने करम देवता से क्षमा मांगी और फिर से पूजा की। उसके बाद घर में सुख-समृद्धि लौट आई।
यह कहानी हमें सिखाती है कि प्रकृति का अपमान करने पर जीवन कठिन हो जाता है, लेकिन उसका सम्मान करने से खुशहाली मिलती है।
Karma Parva : करमा नृत्य
पूजा के बाद असली रंग शुरू होता है। ढोल, मंद्र और नगाड़े की थाप पर युवतियाँ और युवक हाथ पकड़कर गोल घेरे में नाचते हैं। इसे करमा नृत्य कहते हैं।
- नृत्य में ताल और लय इतनी सुंदर होती है कि देखने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है।
- महिलाएँ रंग-बिरंगे परिधान पहनती हैं, सिर पर पत्तों और फूलों का श्रृंगार करती हैं।
- रात भर नाच-गाना चलता है।
करमा नृत्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामूहिक एकता और सामंजस्य का प्रतीक है।
Karma Parva : सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
- भाई-बहन का त्योहार
- इसे राखी की तरह भी माना जाता है।
- बहनें करम देवता से अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
- प्रकृति की पूजा
- यह त्योहार हमें बताता है कि पेड़-पौधे, जंगल और प्रकृति हमारी जिंदगी के साथी हैं।
- सामूहिकता का भाव
- इसमें पूरा गांव मिलकर शामिल होता है, चाहे अमीर हो या गरीब।
- लोक संस्कृति का संरक्षण
- करमा गीत, करमा नृत्य और कथाएँ आज भी हमारी लोक संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं।
Karma Parva : आधुनिक समय में करमा पर्व
आज भी झारखंड और आस-पास के राज्यों में करमा पर्व बहुत जोश और श्रद्धा से मनाया जाता है।
- अब यह केवल ग्रामीण नहीं, बल्कि शहरी इलाकों में भी मनाया जाने लगा है।
- स्कूल, कॉलेज और सांस्कृतिक संस्थानों में करमा नृत्य के कार्यक्रम होते हैं।
- सरकार और सांस्कृतिक संस्थाएँ इसे राज्य स्तरीय त्योहार की तरह प्रोत्साहित कर रही हैं।
Karma Parva : करमा पर्व का संदेश
करमा पर्व हमें यह सिखाता है कि—
- प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान करना चाहिए।
- भाई-बहन और परिवार का रिश्ता मजबूत रखना चाहिए।
- सामूहिकता और एकजुटता में ही समाज की शक्ति है।
- मेहनत और ईमानदारी से ही सुख-समृद्धि मिलती है।
निष्कर्ष
करमा पर्व सिर्फ एक त्योहार नहीं है, यह जीवन का उत्सव है। इसमें खेतों की हरियाली, जंगल की खुशबू, ढोल की थाप, गीतों की गूंज और रिश्तों की मिठास सबकुछ शामिल है।
जब रात को गांव की अखरा में हजारों लोग एक साथ गोल घेरे में नाचते हैं, तो लगता है मानो पूरा ब्रह्मांड आनंद में डूब गया हो। यही है करमा पर्व — जो हमें इंसानियत, भाईचारा और प्रकृति के प्रति प्रेम का पाठ पढ़ाता है।