Terrorist : आतंकवादियों का मजहब होता हैं ?
हजारों सबूत और गवाह अब भी मौजूद हैं जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में, जो चीख-चीख कर कह रही है की ये इस्लामी आतंकवादि थे, जिन्होंने पहले तो नाम पूछा फीर कलमा पढ़ने को कहाँ और फीर सैलानियों का सीना छल्ली कर दिया। .
उस दिन किसी ने बाप खोया, तो किसी ने माँ, किसी ने पति,तो किसी ने भाई।
बेगुनाह होने की ऐसी सजा तो ये इस्लामी आतंकवादि ही किसी को दे सकते हैं, जो खुद चलते फिरते मुर्दा बंदूकधारी बन चुके होते है।
इनकी बलि प्रथा न जाने कब खत्म होगी ,आज संसार आधुनिकता की ओर अग्रसर है, पर इस्लाम आतंकवाद की ओर से अपने पैर कभी खिच ही नहीं पाया। ये बरगलाए हुए इस्लामी गुर्गे जो अपनी मौत का दिन जन्नत के नाम पर चुनते है। कैसे शेख चिल्ली है ये अवल्ल दर्जे के कायर जो खुद को जिहादी कहते हैं।
Terrorist : जन्नत तो दूर दोज़ख भी नसीब नहीं होगी !
वो कत्ल के वक्त ये भी नहीं सोचते की बेगुनाहो पर गोलियां चलाने से इनको जन्नत कैसे नसीब हो सकती है। अल्लाह के नजर में भी तुम्हारे गुनाह बहुत घिनौने हैं और जन्नत तो दूर दोज़ख भी नसीब नहीं होगी तुम जैसों को । ये होता है अल्लाह का इंसाफ।
न जीते जी तुम्हे कोई अपना कहेगा न मरने के बाद तुम्हे दो गज जमीन नसीब होगा।
आतंकियों के नापाक मंसूबे कभी कामयाब नहीं होंगे क्योंकि हमारा भारत एक धर्म निरपेक्ष देश हैं, जहाँ हमारे बीच मजहबी मतभेद तो है पर आपसी मनभेद नहीं।
आईए आज पुरा भारतवर्ष मिलकर यह सौगंध लेते हैं की सर्वप्रथम देश है उसके बाद ही धर्म है .
देश से ऊपर कुछ नहीं होता, याद करो उस दिन को जब अंग्रेजी से हमने एक साथ मिलकर लोहा लिया था, तब तो देश ही सर्वोपरि था, फिर आज इतनी नफरत क्यों, जवाब कोई और नहीं देगा क्योंकि जवाब तुम्हारे अंदर ही कही घर कर गया है,