Osho: भावों के तूफान में, जब भय होता है तो क्या करना ?
भावों के तूफान में
मुझे लगता है कि मैं हमेशा भावों के तूफान में घिरा रहता हूं, इससे बाहर कैसे निकलना? मैं ने सिर्फ निरीक्शण करके देखा है लेकिन जैसे ही एक भाव चला जाता है, दूसरा आ खड़ा होता है।
हर उस भाव को जीयो जिसे तुम महसूस करते हो। वह तुम ही हो।
घृणा से भरे, कुरूप, अपात्र – जो भी हो, उसमें रहो। पहले भावों को एक मौका दो पूरी तरह चेतन मन में आने का। अभी जागरूकता के प्रयास में तुम उन्हें अवचेतन में दबा रहे हो । फिर तुम अपने रोजमर्रा के कामों में उलझ जाते हो और उन्हें जबरदस्ती दबा देते हो। उनसे निजात पाने का यह तरीका नहीं है।
उन्हें बाहर आने दो; उन्हें जीयो। यह कठिन और दूभर होगा लेकिन अपरिसीम रूप से लाभदायी। एक बार तुमने उनको जी लिया, उनकी पीड़ा झेली और उन्हें स्वीकार किया कि यह तुम हो, कि तुमने खुद को इस तरह नहीं बनाया है इसलिए तुम्हें खुद का धिक्कार नहीं करना चाहिए, कि तुमने खुद को इसी तरह पाया है …. एक बार तुम उन्हें होश पूर्वक जी लेते हो बिना किसी दमन के, तुम आश्चर्य चकित होओगे कि वे अपने आप विलीन हो रहे हैं। तुम्हारी गर्दन पर उनकी पकड़ ढीली हो रही है, तुम्हारे ऊपर उनकी ताकत कम हो रही है। और जब वे विदा होते हैं तब वह समय आ सकता है जब तुम साक्षीभाव से देखना शुरू करोगे।
एक बार सब कुछ चेतन मन में आता है तो वह खो जाता है, और जब सिर्फ एक छाया रहती है तो वह समय होता है होश पूर्वक देखने का। अभी तो वह स्किजोफ्रेनिया, खंडित मन पैदा करेगा; बाद में वह बुद्धत्व पैदा करेगा।
जब भय होता है तो क्या करना?
जब भय हो तो कुछ करने के लिए क्यों पूछते हो? भयभीत होओ! द्वंद्व क्यों पैदा करना? जब भय के क्षण आएं तो डरो, कांपने लगो और भय को हावी हो जाने दो। यह सतत प्रश्न क्यों कि क्या करें? क्या तुम जीवन को किसी तरह अपने ऊपर हावी नहीं होने दे सकते?
जब प्रेम हावी हो जाता है तब क्या करना? प्रेमपूर्ण होओ। कुछ मत करो, प्रेम को हावी होने दो। जब भय होता है तब तूफान में कंपते हुए पत्ते की भांति कंपो, और वह सुंदर होगा। जब वह चला जाएगा, तुम शांत और निस्तरंग महसूस करोगे, ठीक वैसे ही जैसे कोई तेज तूफान गुज़र जाता है तो सब कुछ शांत और नीरव हो जाता है। हमेशा किसी न किसी चीज से लड़ना क्यों?
भय होता है – वह नैसर्गिक है, बिलकुल नैसर्गिक। ऐसे आदमी की कल्पना करना जो कि भय विहीन हो, असंभव है क्योंकि वह मुर्दा होगा। तब कोई रास्ते पर भोंपू बजा रहा होगा और निर्भय आदमी चलता चला जाएगा, वह फिक्र ही नहीं करेगा। रास्ते में एक सांप आएगा और निर्भय आदमी फिक्र नहीं करेगा। भय न हो तो आदमी बिलकुल मूर्ख और बेवकूफ होगा।
भय तुम्हारी बुद्धि का हिस्सा है; उसमें कुछ भी गलत नहीं है।
भय केवल यही दिखाता है कि मृत्यु है; और हम इन्सान यहां सिर्फ कुछ क्ष्णों के लिए हैं। वह कंपन यह कह रहा है कि हम सदा यहां नहीं रहेंगे, हम शाश्वत रूप से यहां नहीं हैं; कुछ दिन और, और तुम विदा हो जाओगे।
सच तो यह है कि भय के कारण मनुष्य धर्म की गहरी खोज करता है, अन्यथा कोई सवाल नहीं होता। कोई पशु धार्मिक नहीं है क्योंकि किसी पशु में भय नहीं होता।
कोई पशु धार्मिक नहीं हो सकता क्योंकि किसी पशु को मृत्यु का अहसास नहीं होता। मनुष्य को मृत्यु का अहसास होता है। प्रति पल मृत्यु है और तुम्हें हर तरफ से घेरे है। किसी भी क्षण तुम विदा हो जाओगे; इससे तुम कंपने लगते हो। भय क्यों करना? कंपो। लेकिन फिर अहंकार कहता है, ” नहीं, तुम और डर रहे हो? नहीं, यह तुम्हारे लिए नहीं है, यह डरपोकों के लिए है। तुम तो बहादुर आदमी हो।”
भय को इजाजत दो, उससे लड़ो मत। देखो क्या घट रहा है, देखते जाओ। जैसे-जैसे तुम्हारी देखनेवाली आंख अधिक पैनी, अधिक तीव्र होगी, शरीरर कंपने लगेगा, मन कंपने लगेगा, और तुम्हारे भीतर गहरे में चेतना होगी जो सिर्फ साक्षी होती है, जो सिर्फ देखती है। वह अछूती रहती है , जल में कमलवत। जब तुम उसे पा लोगे तब तुम निर्भयता को उपलब्ध होओगे।
लेकिन यह निर्भयता भय का अभाव नहीं है। यह निर्भयता साहस नहीं है। यह निर्भयता एक बोध है कि तुम दुई हो, तुम्हारा एक हिस्सा मर जाएगा और एक हिस्सा शाश्वत होगा। वह हिस्सा जो मरनेवाला है वह हमेशा भयभीत रहेगा। और वह हिस्सा जो नहीं मरेगा, जो अमर है उसके लिए डरने का कोई सवाल ही नहीं है। तब एक गहन समस्वरता होती है।
तुम भय का उपयोग ध्यान के लिए कर सकते हो। तुम्हारे भीतर जो भी है उसका उपयोग ध्यान के लिए करो ताकि तुम पार जा सको।
–OSHO